मैमथ को फिर से लाने पर चल रहा है काम
कैलिफोर्निया । मैमथ को फिर से इस युग में लाने पर काम पहले ही चल रहा है। और यह ऐसा एकमात्र जीव ही नहीं है। अब इस सूची में एक नया नाम जुड़ रहा है। हाल ही में अमेरिका के डालास की कोलोसल बायोसाइंस नाम की बायोटेक कंपनी ने ऐलान किया है कि वह मशहूर विलुप्त हो चुके डोडो पक्षी फिर से दुनिया में वापस लाने का प्रयास करेंगे।
डोडो पक्षी 17वीं सदी के अंत के आसपास मॉरिशस के द्वीप में पाया जाता था जो उड़ नहीं पाता था। विलुप्त हो चुका यह पक्षी इंसानों के प्रकृति पर विनाशकारी प्रभाव का प्रतीक बन गया था। कंपनी को डोडो को फिर से दुनिया में लाने के लिए 22।5 करोड़ डॉलर का निवेश मिला है। उसकी सभी योजनाएं जीनोम एडिटिंग, स्टेम सेल बायोलॉजी, और पशुपालन की उन्नति पर निर्भर करती हैं। इसलिए यह कहना अभी जल्दबाजी हो जाएगी कि यह कवायद में सफलता निश्चित तौर पर मिलेगी।
वेल्स कॉलेज के कोशिका और आणविक प्रजनन शरीरविज्ञानी थॉमस जेसेन का कहना है कि यह अविश्नीय रूप से उत्साहजनक है कि इतने स्तर का पैसा उपलब्ध है। लेकिन वे आश्वस्त नहीं हैं कि उनका अंतिम लक्ष्य निकट भविष्य बहुत ही शानदार होगा। कोलोसल की योजना डोडो के सबसे निकटतम जीवित संबंधी रंगबिरंगे चमकीले पंखों वाले निकोबार कबूतर से शुरुआत करने की है। इससे एक प्राइमॉर्डियल जर्म सेल अलग किया जाएगा जिससे वे निकोबार कबूतर विकसित करेंगे। इसके बाद उनका लक्ष्य पीजीसी में डीएनएस सीक्वेसिंग को संपादित करना होगा जो डोडो के डीएनए से मेल खाते हैं। इसके लिए वे क्रीस्पर जैसे आज के उन्नत जीन एडिटिंग उपकरणों का उपयोग करेंगे। इसके बाद संपादित कोशिकाओं को सेरोगेट प्रजातियों के भ्रूणों में डाला जाएगा जिससे “चाइमेरिक” जानवर पैदा हो सकें जिसमे दोनों प्रजातियों के डीएनए होंग जिनसे अंततः डोडो से मिलते जुलते जीव पैदा होंगे।
फिर भी तमाम विशेषज्ञों के मुताबिक इस योजना के सामने बहुत सारी चुनौतियां भी हैं। पहली तो यह की निकोबार कबूतर की पीजीसी को संपादिन करने के लिए वैज्ञानिकों ने शुरुआत में ही है ऐसे हालत की पहचान करनी होगी जिससे ये कोशिकाएं प्रयोगशाला में पनप सके। ऐसा पहले से ही चूजों के साथ किया जा चुका है, लेकिन दूसरे पक्षी की प्रजातियों में यह प्रक्रिया दोहराते रहने में समय लग सकता है। सांता क्रूज की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के पेलियोजेनेटिसिस्ट हबेथ शापिरो, जिन्होंने हाल ही में डोडो जीनोम सीक्वेंसिंग की जो निकोबार कबूतर को डोडो में बदलने वाले अनुवांशिकीय बदलाव करने से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण थी।
वेकोआस-फीनिक्स में मॉरीशियन वाइल्ड फाउंडेशन के संरक्षण निदेशक विकास तात्या का कहना है कि यह सवाल पूछना ही होगा कि क्या हमारे पास ऐसा पैसा हो सकता है, क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम मॉरीशस के आवास की बहाली के लिए खर्च करें और आज की प्रजातियों को विलुप्त होने से रोकें। लेकिन फिर भी वे और अन्य वैज्ञानिक इस प्रयास के लिए उत्साहित ही हैं।इसके अलावा ऐसे पक्षी को खोजना जो इतना बड़ा हो जो सेरोगेट की तरह काम कर सके आसान नहीं हैं क्योंकि डोडो का अंडा नोकोबार कबूतर के अंडे से काफी बड़ा होता है। इसके अलावा यदि डोडो को फिर विकसित कर भी लिया गया तो 17वी सदी के शिकारी जीवों ने उन्हें खत्म किया था वे अभी गए नहीं है। जबकी डोडो के अधिकांश आवास खत्म हो चुका है।