राजगढ़ ।    मध्‍य प्रदेश की राजनीति में राजा और महाराजा का प्रभाव कई सीटों पर दिखता है। राजा यानी कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह और महाराजा यानी केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सियासी पिच पर शह-मात का खेल कोई नया नहीं है। इस बार स्थितियां थोड़ी उल्ट हैं।

अब हैं ऐसे हालात

अब दोनों नेता एक ही दल में न होकर एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी दलों में हैं। ऐसे में कांग्रेस अगर मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल में कुछ सीटों को साधने में दिग्विजय का सहारा लेने चाहती है तो राजगढ़ जिले की पांच सीटों पर भाजपा ने राजा को चुनौती देने के लिए रणनीतिक जिम्मेदारी महाराजा को सौंपनी की योजना बनाई है।

दोनों ही नेताओं की पकड़

दोनों ही नेता एक दूसरे के गढ़ में पकड़ रखते हैं। राजगढ़ को दिग्विजय का गढ़ माना जाता है तो इस क्षेत्र में सिंधिया घराने की भी गहरी पैठ रही है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया व माधव राव सिंधिया तत्कालीन गुना लोकसभा सीट से सांसद रहे हैं।

उस समय की गुना सीट में राजगढ़ जिले का ब्‍यावरा विधानसभा क्षेत्र शामिल था। तब संसदीय सीट का दायरा इतना बड़ा था कि चाचौड़ा और राघौगढ़ विधानसभा क्षेत्र भी उसी में था। यानी राजगढ़ की तीन विधानसभा सीटें प्रभावित होती थीं।

तब भी प्रतिद्वंद्विता कम नहीं थी

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि एक दल में जब थे तब भी प्रतिद्वंद्विता कम नहीं थी। राजा व महाराजा की राजनीतिक प्रतिद्वंता वर्षों पुरानी है। दोनों घरानों के बीच यह खींचतान माधवराव सिंधिया के जमाने से ही चली आ रही है।

राजगढ़ से सिंधिया परिवार का धार्मिक जुड़ाव भी है। इस क्षेत्र में होड़ामाता मंदिर है। यह मंदिर खिलचीपुर विधानसभा व राजस्थान से लगा हुआ है। होड़ामाता को सिंधिया परिवार अपनी कुलदेवी मानता है। इसके आलावा राजगढ़ विधानसभा क्षेत्र में तंवर समाज बहुल है। तंवर समाज की भी यह कुल देवी हैं, इसलिए सिंधिया परिवार का तंवर समाज से भी सीधा जुड़ाव माना जाता है।