आरएस चौधरी सहसंपादक

हरदा /काशी में चल रही भागवत कथा के दौरान पण्डित श्री सुशील जी जोशी द्वारा भागवत कथा मैं कृष्ण लीलाओं का वर्णन किया पांचवे दिन की कथा में गुरु जी ने भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का सुंदर वर्णन किया जिसमें मां यशोदा के साथ वात्सल्य लीला,सखाओ का प्रेम,राक्षसों का वध कालिया नाग को नथने की कथा और पूतना वध की सुंदर कथा सुनाई जिसमें गुरुजी ने बतलाया की पूतना जैसी राक्षसी की कथा आखिर सुकदेव मुनि ने राजा परीक्षित को क्यों सुनाई।इस कथा को सुनाने का उनका एक ही उद्देश था की मुझे जो जिस भाव से भजता है मैं भी उसे उसी भाव से भजता हूं,और पूतना जैसी राक्षसी का भी उद्धार करता हूं।पूतना पूर्व जन्म में राजा बलि की पुत्री रत्ना थी और बामन भगवान को देखकर उनके मन में ये भाव आया था की मैं इस सुंदर बालक को स्तन पान कराऊं लेकिन जब भगवान ने बाली का सब कुछ छीन लिया तो उसके मन में आया की मैं अपने स्तनों में ज़हर मिलाकर इस बालक को मार डालूं,भगवान ने उसके दोनों भावो की इक्षा की पूर्ति इस जन्म में की। भगवत गीता के चतुर्थ अध्याय के ग्यारहवें श्लोक में भगवान कहते हैं जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं,मैं भी उन्हें उसी प्रकार भजता हूं । क्योंकि सब पुरुष सभी प्रकार से मेरा ही अनुसरण करते हैं।अपनी प्रतिज्ञा को उन्होंने पूतना के साथ भी सार्थक कर पूतना का उद्धार किया। गुरुजी ने बतलाया की आप जब से भी ईश्वर के भजन में लग रहे हो लग जाओ चाहे रिटायरमेंट के बाद भी। भगवान ने भगवत गीता के नव वे अध्याय के 29 वे श्लोक में कहा है की ना तो मैं किसी से द्वेष करता हूं और ना ही बहुत प्रेम मैं सब में सम भाव रखता हूं।और तीसवें श्लोक में कहते हैं की कोई दुराचारी भी मुझे प्रेम सहित भजता है तो उसे भी साधु जैसा ही मानना चाहिए। पूर्व जन्म में पूतना ने भगवान के बाल रूप से प्रेम किया था अतः पूतना को भी साधु जैसा माना जाना चाहिए।कहने का मतलब ये है की जब जागे तभी सबेरा।संगीत मय भजनों से पंडित जी ने लोगों को थिरकने पर मजबूर कर दिया,और कथा में प्रेम मय रस का रसास्वादन करवा कर हमारे जीवन को धन्य किया।