छत्तीसगढ़ सरकार एवं बीज निगम द्वारा आदिवासी सेवा सहकारी समितियों में किसानों के लिए उपलब्ध कराए गए उन्नत किस्म के बीज किसानों के लिए बेकार साबित हो रहे हैं, खेतों में रोपा लगाने के पहले किसानों द्वारा तैयार की जाने वाली धान की नर्सरी में यह बीज जम ही नहीं रहे हैं। जो भी क्षेत्रों में जम रहे हैं उनका प्रतिशत भी 40 से 50% ही है ऐसे में समय व्यतीत होने के साथ किसानों को खेती में नुकसान होने का डर सता रहा है।

मानसून की बारिश होने के पहले ही किसान धान की फसल के लिए खेतों को तैयार करना शुरू कर देते हैं। वहीं, बारिश होने के पहले उन्नत किस्म के बीज खरीदते हैं ज्यादातर किसान छत्तीसगढ़ शासन बीज निगम द्वारा सहकारी समितियों में आपूर्ति किए गए उन्नत किस्म के बीजों का ही चयन करते हैं क्योंकि इन बीजों की उत्पादन क्षमता के साथ-साथ रोगों से लड़ने की क्षमता परंपरागत बीजों से अधिक होती है। पर इस बार पेंड्रा मरवाही क्षेत्र में सहकारी समितियों द्वारा उपलब्ध कराए गए उन्नत किस्म के बीज जिसमें 1010 किस्म का धान शामिल है, जिसे क्षेत्र के लोग बहुतायत में बोते हैं।

जब इस बार किसान 1010 किस्म के धान बीज की नर्सरी तैयार करने के लिए उसे खेतों में बोया गया तब इन बीजों का अंकुरण 40 से 50% ही हुआ जबकि कुछ किसानों के खेतों में इसका अंकुरण और भी कम रहा।जिसकी वजह से किसान अब दोहरी मार झेलने को विवश हैं क्योंकि जहां एक तरफ उनके द्वारा बोले गए बीज बेकार साबित हो रहे हैं तो वहीं धान बुवाई का समय भी तेजी से बीतता जा रहा है। अब किसान को मजबूरी में अधिक उपजाऊ रोपा पद्धति को छोड़कर सुखी बुआई करना होगा पर इसमें किसानों को धान के उत्पादन का नुकसान तो होगा ही साथ ही खेती के लिए नए बीजों का भी करना पड़ेगा। वही इस पद्धति से धान लगाने पर रोग लगने का खतरा भी अधिक होता है। यही हाल खुले बाजार से खरीदे गए इस किस्म के धान का भी है खुले बाजार से खरीदे गए किसान भी इन बीजों के कम अंकुरण से परेशान हैं।