इस्लामाबाद । अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच आतंकवादी संगठनों पर लगाम लगाने के लिए हुई बैठक के बीच आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने कहा कि उसके पास काफी पाकिस्तानी लड़ाके हैं। हमें किसी और की जरूरत नहीं है। जबकि अमेरिकी हथियारों के इस्तेमाल के बारे में टीटीपी समूह का दावा है कि ये हथियार पाकिस्तानी फौज और प्रशासन की मिली-भगत से पाकिस्तान के बाजारों में खुलेआम बिक रहे हैं। अपने देश में आतंकवादी संगठनों के लगातार हमलों से दुखी पाकिस्तान सरकार अब अफगानिस्तान के तालिबान प्रशासन की शरण में पहुंची है। लेकिन शाहबाज सरकार को शायद ही कोई राहत मिलने की उम्मीद है। 
पिछले दो दिनों में हुई बैठक के दौरान पाकिस्तानी विशेष दूत आसिफ दुर्रानी ने बार-बार केवल एक बात तालिबान के अधिकारियों के सामने की है। दुर्रानी ने कहा कि आतंकवादी संगठन टीटीपी और उससे जुड़े संगठन पूरी तरह से तालिबान के कब्जे वाले संगठन हैं। अगर तालिबान के बड़े लड़ाके चाहें, तब ये संगठन अपनी हरकतों पर लगाम लगा सकते हैं। इस पर पाकिस्तान को अफगानिस्तान की तरफ से खरा-खरा जवाब मिला है कि टीटीपी पर तालिबान का कोई नियंत्रण नहीं है। यह पूरी तरह से पाकिस्तान की अपनी समस्या है, इस पूरी तरह से अपने तौर पर सुलझाना चाहिए। 
दिलचस्प है कि पाकिस्तान को पहली बार ठीक वैसा ही जवाब मिला है, जैसा वह आतंकवाद के मामले में अभी तक भारत को देता आया था। भारत ने जब भी यह बात की पाकिस्तान में आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप चल रहे हैं और पाकिस्तानी फौज उन्हें पूरी तरह से शह दे रही है। तब इसके जवाब में पाकिस्तान ने कहा कि पाकिस्तान में कोई ट्रेनिंग कैंप मौजूद नहीं है। ठीक उसी तरह अफगानिस्तान के तालिबान नेताओं ने पाकिस्तान के विशेष दूत को खरे और कड़े शब्दों में कहा कि अफगानिस्तान की सरजमीं पर कोई ट्रेनिंग कैंप नहीं चल रहा है और न ही अफगानिस्तान टीटीपी को कोई शह दे रहा है। 
वहीं आतंकवादी संगठन ने बयान जारी कर कहा कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान न  अफगानिस्तान की जमीन का उपयोग करता है और न ही अफगानिस्तान के नागरिकों का। संगठन के पास पर्याप्त मात्रा में पाकिस्तानी लड़ाके पाकिस्तान की अपनी सरजमीं पर मौजूद हैं, जो टीटीपी की भी अपनी सरजमीं है। आतंकवादी संगठन टीटीपी की तरफ से कहा गया कि पाकिस्तान का यह दावा कि उसके लड़ाके अमेरिकी हथियारों का प्रयोग कर रहे हैं, तब इस संगठन ने अफगानिस्तान में अमेरिका की हार से पहले भी इन हथियारों का इस्तेमाल किया था। ये हथियार पाकिस्तानी फौज और प्रशासन की मिलीभगत से पाकिस्तानी बाज़ारों में आसानी से उपलब्ध हैं।