Pitru Suktam Se Labh: आज 16 अगस्त 2023 को अधिक मास अमावस्या है. पितृ सूक्तम पाठ बेहद ही चत्मारी माना जाता है. पितृ पक्ष के सभी 15 या 16 दिन, पूर्णिमा और अमावस्या को पितृ सूक्तम का पाठ करना लाभकारी होता है.

इसके पाठ से पितृदोष दूर होता है क्योंकि इसको पढ़ने से सभी पितर देव प्रसन्न होते हैं. उनके आशीर्वाद से सभी प्रकार की विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं. जब पितरों की कृपा होती है तो उन्नति होने लगती है. पुत्र, धन, वैभव, सुख्र सुविधाएं प्राप्त होती हैं.

पितृ सूक्तम संस्कृत में लिखा गया है. इसमें कुल 15 श्लोक हैं. जब भी आप इसका पाठ करें तो इसके शुद्ध उच्चारण का ध्यान रखें. वाराणसी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं पितृ सूक्तम पाठ की विधि के बारे में.

पितृ सूक्तम पाठ विधि
पितृ सूक्तम का पाठ आप पितृ पक्ष में प्रत्येक दिन शाम को कर सकते हैं. वैसे भी अमावस्या या पूर्णिमा की शाम को ही पितृ सूक्तम का पाठ करते हैं. जब भी आपको यह पाठ करना हो तो आप पहले स्वयं को पवित्र कर लें, उसके बाद तेल का एक दीपक जला लें. फिर अपने पितरों को याद करके पितृ सूक्तम का पाठ प्रारंभ करें. इसका पाठ पूर्ण होने पर आप चाहें तो अपने पितरों की आरती भी कर सकते हैं.

पितृ-सूक्तम्

उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥1॥

अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥2॥

ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥3॥

त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥4॥

त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥5॥

त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥6॥

बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥7॥

आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥8॥

उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥9॥

आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥10॥

अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥11॥

येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥12॥

अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥13॥

आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥14॥

आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥15॥

ॐ शांति: शांति: शांति:!!!

पितृ पक्ष क्यों होता है? कमेंट बॉक्स में अपना उत्तर दें.
1. पितरों की पूजा के लिए
2. पितरों के श्राद्ध कर्म के लिए
3. पितृ दोष से मुक्ति के लिए
4. इन सभी कार्यों के लिए