रंग बदलते मौसम से लोग परेशान
भोपाल । तीन दिन पहले मौसम विभाग ने तीन महीने का अनुमान जारी किया था जिसमें कहा गया था कि इस बार देशभर में ज्यादा ठंड नहीं पड़ेगी। दिन और रात का तापमान सामान्य या उससे थोड़ा ज्यादा रहेगा। लेकिन भोपाल सहित मप्र में मौसम का मिजाज कुछ अलग रहेगा। यहां रात में दिसंबर से फरवरी तक अच्छी ठंड पड़ेगी क्योंकि उत्तर से आने वाली सर्द हवा का असर बरकरार रहेगा। इसकी वजह यह भी है कि ज्यादा बारिश होने के कारण सतपुड़ा और विंध्याचल की पहाडिय़ां इस बार ज्यादा हरी-भरी हैं। इनके कारण भी अर्थ रेडिएशन तेजी से होगा यानी दिन की तपिश शाम ढलते ही तेजी से कम होगी। हालांकि दिन में कड़ाके की ठंड से राहत रहेगी क्योंकि तापमान सामान्य या उसके आसपास रहेंगे। राजस्थान के पश्चिमी हिस्से में तापमान सामान्य या उससे ज्यादा बने रहने की संभावना है। इसका असर भोपाल समेत मध्यप्रदेश के अधिकांश हिस्सों में पड़ सकता है। इसी कारण इस बार दिन में तापमान ज्यादातर दिनों तक सामान्य उसके आसपास बने रहने की संभावना है। भोपाल के दिसंबर के क्लाइमेटिक फीचर्स के मुताबिक दिन का औसत तापमान 26.4 डिग्री और रात का औसत तापमान 11.3 डिग्री है। सीजन में दिन में धुंध और कुहासे के कारण तापमान बहुत ज्यादा नहीं बढ़ पाएंगे। इसकी वजह यह है कि सोलर रेडिएशन बहुत ज्यादा नहीं होगा।
भोपाल में रविवार रात तापमान 13.4 डिग्री दर्ज किया गया। 17 दिन बाद पारा 13 डिग्री पार पहुंचा। पिछले 24 घंटे में इसमें 0.90 का इजाफा हुआ। इसके बावजूद यहां रात में अच्छी ठंड पड़ रही है। राजधानी में दिन का तापमान 28.90 दर्ज किया गया। 3 दिन बाद भोपाल सहित प्रदेशभर में रात में पारा 20 तक गिर सकता है। हमारे यहां ठंड के लिए सबसे जरूरी माने जाने वाले फैक्टर वेस्टर्न डिस्टरबेंस की तीव्रता पिछले 20 साल में 10 प्रतिशत बढ़ गई है। इससे देश के पहाड़ी इलाकों पर बर्फबारी ज्यादा हो रही है। मैदानी इलाकों में ठंड में इजाफा हुआ है। इस कारण अब दिसंबर के दूसरे पखवाड़े से लेकर मार्च के पहले पखवाड़े तक ठंड पडऩे लगी है। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च आइसर भोपाल के स्टूडेंट्स द्वारा वेस्टर्न डिस्टरबेंस पर किए गए रिसर्च में यह तथ्य सामने आए हैं। रिसर्च के लिए 1980 से सन 2000 और 2001 से 2020 तक के डाटा की तुलनात्मक स्टडी की गई। आइसर के अर्थ एंड एनवायरमेंटल साइंस डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ पंकज कुमार के गाइडेंस में पीएचडी के स्टूडेंट आकिब जावेद द्वारा इस पर रिसर्च किया गया।
रिसर्च में यह तथ्य सामने आए कि बाकी इलाकों के मुकाबले हिमालय रीजन के काराकोरम में ग्लेशियर जमे हुए हैं ये पिघल नहीं रहे हैं। इसका असर यह हुआ कि पूरे रीजन में दो तिहाई बर्फबारी यहीं पर हो रही है। रिसर्च में कंप्यूटर कोड ट्रैकिंग एलगोरिसम का इस्तेमाल कर पाथ बनाया गया। फिर इसे फिल्टर किया गया। तब यह जानकारी सामने आई कि मेडिटेरियन सी से हिमालय के इस रीजन तक ये वेस्टर्न डिस्टरबेंस नमी ज्यादा ला रहे हैं। इसी करण बर्फबारी भी बढ़ गई। इसका असर सभी मैदानी इलाकों में ज्यादा ठंड के रूप में हुआ। रिसर्च में 40 साल के डाटा के साथ यूरोप और अमेरिका की एजेंसी के तीन डेटा सेट भी शामिल किए गए। रिसर्च को लेकर आईएमडी दिल्ली के चीफ फोरकास्टर डॉ. आर जेनामणि का कहना है कि जो रिसर्च होते हैं वह रिव्यू कमेटी के सामने आते हैं। फिर उन्हें जर्नल में शामिल किया जाता है।