नई दिल्ली । साल 2021 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ओडिशा के समकक्ष नवीन पटनायक के लिए एक लेख लिखा था, जिसमें कहा गया था, आमतौर पर लोग ताकत और समय के साथ बदल जाते हैं। लेकिन वह नहीं बदले। नवीन बाबू, जिन्हें मैंने जैसा 50 साल की उम्र में देखा था, वह आज भी वैसे ही हैं। मौजूदा सियासी घटनाक्रमों से भी संकेत मिल रहे हैं कि सीएम पटनायक ने राजनीति करने के अपने तरीके को नहीं बदला है। शायद यही वजह रही कि उन्होंने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया। हालांकि पटनायक के फैसले के और भी सियासी और वैचारिक कारण नजर आते हैं। ओडिशा पहुंचे सीएम कुमार ने तटीय राज्य और पटनायक के साथ पुराने रिश्ते याद कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन बाहर आते ही पत्रकारों के सामने पटनायक ने साफ कर दिया था कि गठबंधन को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है। 21 लोकसभा सीटों वाले ओडिशा का गणित समझें, तो यहां 12 बीजू जनता दल, 8 भारतीय जनता पार्टी और 1 कांग्रेस के पास हैं। कहा जा रहा है कि गठबंधन से इनकार की बड़ी वजह पटनायक की भाजपा और कांग्रेस से दूरी बनाकर रखने की नीति रही। एक मीडिया रिपोर्ट में जनता दल (यूनाइटेड) के सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि पटनायक के गठबंधन में आने से हो सकता था कि उनका जन समर्थन भाजपा के साथ चला जाए। ऐसे में उनके फैसले को समझा जा सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार एक जेडीयू नेता ने कहा ‎कि क्षेत्रीय दल का नेता होने के नाते पटनायक ने कभी भी राष्ट्रीय महत्वकांक्षा नहीं रखी। अब अगर वह विपक्षी गठबंधन में आते, तो संकेत मिलते कि उन्होंने कांग्रेस के नीचे भूमिका निभाने में हामी भर दी है। इसका मदद से भाजपा कांग्रेस विरोधी बीजद मतदाताओं में सेंध लगा देती और साथ ही पटनायक को भी इससे नुकसान होता। उन्होंने कहा ‎कि ओडिशा में 2024 में विधानसभा चुनाव होने के चलते वह यह जोखिम नहीं उठा सकते थे। भाजपा और कांग्रेस से उनकी दूरी एक सोची समझी रणनीति है और नीतिश कुमार यह बात जानते हैं। माना जा रहा है कि नीतीश ने हर सीट पर एकजुट विपक्ष का एक उम्मीदवार खड़ा करने का सुझाव दिया था। खास बात है कि 21 लोकसभा सीटों वाला ओडिशा नीतीश की यात्रा में बड़ा पड़ाव था,‎ जहां उन्हें सफलता नहीं मिल सकी। एक ओर जहां नीतीश 2022 में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस से अलग हो गए थे। जबकि पटनायक 2008 में ही इसे अलविदा कह चुके हैं।