मतांतरण की आग में झुलसते बस्तर जिले में कई गांव ऐसे भी हैं, जहां आदिवासी अब मूलधर्म में लौटने लगे हैं। लोहंडीगुड़ा ब्लाक के आंजर, कस्तूरपाल, पारापुर, छिंदबहार, बाघनपाल, अलनार, मटनार सहित एक दर्जन से अधिक गांव में करीब 80 परिवारों के 500 से अधिक लोगों ने घर वापसी की है। इनमें अधिकतर लोग उन गांवों के हैं, जहां कुछ माह पहले तक मतांतरण को लेकर विवाद हो रहे थे और लोग एक-दूसरे को मारने तक पर उतारु थे। इसके बाद आदिवासी संगठनों ने बस्तर के दर्जनों गांव में पिछले कुछ माह में ग्रामसभा बुलाकर मतांतरितों को समझाया। अवैध मतांतरण रोकने को जल, जंगल, जमीन पर प्रतिबंध सहित कई प्रस्ताव पारित किए। इसके बाद इन गांवों में स्थिति बदली हुई दिखाई दे रही है। मतांतरितों को अब यह समझ आने लगा है कि इसी तरह से मतांतरण होता रहा तो एक दिन आदिवासी संस्कृति ही मिट जाएगी। इस षड्यंत्र को समझने के बाद धीरे-धीरे मतांतरित अपने मूल मत में लौटने लगे हैं। लोहंडीगुड़ा के आंजर गांव में एक माह पहले हुई ग्रामसभा के बाद यहां 30 मतांतरित परिवार में से 17 परिवार मूलधर्म में लौट आए हैं। खेतों में काम कर रहे सकरू कश्यप ने बताया कि ग्रामसभा की ओर से समझाने के बाद वह अपनी संस्कृति के महत्व को समझ सके, इसलिए घर वापसी कर ली। करीब दस वर्ष बाद सबके साथ मिलकर गांव में अमूस तिहार (त्योहार) मनाया। उनकी पत्नी की तबीयत खराब रहती थी, जिसके बाद चर्च के लोगों के कहने पर उन्होंने मत बदल लिया था। पारापुर में जून माह में ग्रामसभा के बाद से सात परिवार के 47 लोगों ने घर वापसी की है। यहां ग्रामसभा में आदिवासी युवाओं का संगठन तैयार किया गया है, जो मंतातरितों को मूलधर्म में लौटाने का काम कर रहा है। गांव में सहमति, लेकिन केरल के पादरी की अनुमति से रुके छिंदबहार गांव के मासेपारा में सुखराम मंडावी के परिवार ने मूलधर्म में वापसी कर ली है। खेत में काम कर रही उसकी पत्नी दुलगी ने बताया कि ग्रामसभा के समझाने के बाद परिवार ने मूलधर्म में वापसी की है। पोटका कश्यप ने बताया कि ग्रामसभा में सभी के मूलधर्म में लौटने पर सहमति बन चुकी है, लेकिन जगदलपुर स्थित चर्च के लोगों ने संपर्क कर कहा है कि केरल से कोई पादरी आएंगे, तब तक रुकिए। इसलिए कुछ लोगों ने घर वापसी नहीं की है।