नाबालिगों के गर्भवती होने पर दक्षिण अफ्रीकी मंत्री के आपत्तिजनक बयान की आलोचना
केपटाउन । कोरोनाकाल में लागू लॉकडाउन के वक्त बड़ी तादाद में दक्षिण अफ्रीकी देशों की कम उम्र की नाबालिग स्कूली लड़कियां गर्भवती हुई हैं। महामारी के दौरान, बोत्सवाना, नामीबिया, लेसोथो, मलावी, मेडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका और जाम्बिया में ऐसे मामलों में काफी तेजी देखी गई है। बड़ी संख्या में स्कूली बच्चियों के गर्भवती होने की पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है। इस बीच दक्षिण अफ्रीका की एक मंत्री की लड़कियों को लेकर दिए गए आपत्तिजनक बयान की जमकर आलोचना भी हो रही है। फोफी रामाथुबा दक्षिण अफ्रीकी प्रांत लिम्पोपो में क्षेत्रीय स्वास्थ्य मंत्री हैं। उन्होंने एक माध्यमिक विद्यालय के दौरे के समय यह विवादित टिप्पणी की थी। उन्होंने लड़कियों में बढ़ते गर्भधारण की समस्या को लेकर आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था। मंत्री ने तो बच्चों को संबोधित करते समय अपने विवादित शब्दों को दोहराने के लिए भी कहा था।
दक्षिण अफ्रीकी मीडिया के अनुसार, इस वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर किया गया, जिसके बाद यह वायरल होने लगा। यूजर्स ने मंत्री फोफी रामाथुबा की खूब आलोचना भी की है। उनका आरोप है कि मंत्री ने अपने इस आपत्तिजनक बयान में लड़कियों को ही क्यों टॉरगेट किया। जिसके बाद मंत्री ने सफाई देते हुए कहा कि उनका बयान लड़कों के लिए भी था। उन्होंने दावा किया कि स्कूली लड़कियों को महंगे विग और स्मॉर्टफोन का लालच दिया जा रहा है। इस काम में अधिक उम्र के पुरुष शामिल हैं। दक्षिण अफ्रीकी की विपक्षी नेता सिविवे ग्वारुबे ने मंत्री के बयान की निंदा की है। उन्होंने कहा कि मंत्री के पास स्कूली बच्चों से बात करने और उन्हें समझाने का अच्छा अवसर था, लेकिन उन्होंने सार्थक बातचीत के बजाए लड़कियों पर अनुचित दबाव डाला और उन्हें दोषी करार दे दिया।
सामाजिक कार्यकर्ताओं और जिम्बाब्वे के अधिकारियों ने कहा कि कोरोनाकाल के दौरान गरीबी ने लोगों को खास तौर पर प्रभावित किया। इस कारण बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी लड़कियों की शादियां की। कई लड़कियां तो यौन शोषण का शिकार भी हुईं। जिम्बाब्वे में एक शिक्षा अधिकारी तौंगाना नदोरो ने कहा कि बढ़ती संख्या का सामना कर रही सरकार को अगस्त 2020 कानून में बदलाव तक करना पड़ा था। जिम्बाब्वे की सरकार ने लंबे समय से गर्भवती छात्राओं के स्कूल-कॉलेजों में जाने पर रोक लगा दी। तब सरकार ने तर्क दिया था कि यह विकासशील राष्ट्र के लिए ऐसा करना जरूरी है, लेकिन यह नीति सफल नहीं रही। सरकार के इस फैसले के कारण अधिकांश लड़कियां स्कूल वापस नहीं लौटीं। गरीबी, अशिक्षा, बदनामी का डर परिवारों पर इतना हावी हो गया कि वे अपनी बच्चियों को स्कूल भेजने से कतराने लगे।