विंध्य में जातिवाद की राजनीति करना पड़ा भारी, मालवा-निमाड़ साधने की डगर भी है बेहद कठिन

भोपाल ।   मुद्दा जब स्थानीय स्तर पर नेताओं के चयन करने का हो तो क्षेत्र की राजनीति को भी ध्यान में रखा जाता है। मध्यप्रदेश भी इस सियासी तालमेल से अछूता नहीं है और विधानसभा चुनाव में इस बात को ध्यान रखा भी जाएगा कि क्षेत्रीय स्तर पर किस कांग्रेस नेता का क्षेत्र में कितना वर्चस्व है। लेकिन कांग्रेस के लिए ये सूची तैयार करना थोड़ी टेढ़ी खीर है।

जातिवाद का दांव पड़ा उल्टा

दरअसल, बात विंध्य क्षेत्र की हो रही है। इस क्षेत्र के लिए कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं की आपस में ही जंग छिड़ गई है। विंध्य के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह राहुल का नाम प्रस्तावित है, जबकि एक नाम कमलेश्वर पटेल का भी है जो कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति में सदस्य भी हैं। दोनों ही नेता विंध्य क्षेत्र पर फतेह चाहते हैं, जबकि विंध्य क्षेत्र में सिद्धार्थ कुशवाहा का वर्चस्व भी है। कांग्रेस अब इसी पसोपेश में है कि कुर्मी पटेल, कुशवाहा और ठाकुर में से आखिर किस नेता को साधा जाए कि बात बन जाए?  कांग्रेस विंध्य क्षेत्र पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए तीनों बड़े नेताओं को साथ लेकर चलना चाह रही थी, लेकिन तीनों की आपसी खींचतान में कांग्रेस खुद उलझकर रह गई है और एक परिवार की तरह दिखने वाले विंध्य में जातिवाद की राजनीति करने का कमलनाथ का दांव उल्टा पड़ गया।

बहुत कठिन है डगर विंध्य और मालवा-निमाड़ की

एक ओर विंध्य क्षेत्र की चुनौतियां खत्म होने का नाम ले नहीं रही तो दूसरी ओर कांग्रेस के लिए मालवा निमाड़ में एक अलग तरह की चुनौती है। दरअसल, मालवा-निमाड़ की लगभग 66 विधानसभा सत्ता पाने की चाबी मानी जाती हैं। कांग्रेस की ओर से इस क्षेत्र में अरूण यादव का वर्चस्व है और दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह इस क्षेत्र से प्रभारी हैं। ऐसे में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और अरूण यादव में आपसी सहमति न बन पाना भी इस क्षेत्र में कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौति है।  कहा ये भी जा रहा है कि अरूण यादव के आगे दिग्विजय सिंह अपने पसंदीदा उम्मीदवारों के नाम लेने में भी संकोच कर रहे हैं, ऐसे में टिकट के लिए उम्मीदवारों की अंतिम सूची का निर्णय करना आलाकमान के लिए खासा मुश्किल भरा होगा।