बिना बीआईएस पंजीयन और फर्जी मार्क के ही बेचा जा रहा बोतल बंद पानी
भोपाल । राजधानी सहित प्रदेश भर में बोतल बंद, पाउच व जार में बिना बीआईएस (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड) पंजीयन के ही पानी की बिक्री की जा रही है। आलम यह है कि शहर सहित प्रदेश भर में बिना बीआइएस का पंजीयन कराए एक हजार से अधिक कंपनियां अवैध रूप से पानी की बिक्री कर रही हैं। जबकि गत वर्ष जारी किए गए आदेश में अप्रैल माह से ही इसे अनिवार्य किया जा चुका है। बावजूद इसके प्रदेश भर में केवल 165 कंपनियों ने ही इसके लाइसेंस लिए हैं। बीआइएस मार्क नहीं होने से पानी की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा होता है और मिनरल वाटर बताकर इसे धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। नियमानुसार फूड लाइसेंस लेने के बाद बीआइएस से पंजीयन कराना अनिवार्य है।
प्रदेश में बीआइएस के कहां कितने लाइसेंस
- इंदौर - 20
- जबलपुर - 12
- भोपाल - 11
- ग्वालियर - 05
ये है नियम
भारत सरकार ने कई वस्तुओं की गुणवत्ता के लिए उन्हें अनिवार्य प्रमाणन के लिए अधिसूचित किया है। ऐसे उत्पादों के निर्माण के लिए बीआईएस से लाइसेंस लेना अनिवार्य है। पैकेजबंद पानी भी इसी में आता है। अनिवार्य प्रमाणन के तहत आने वाले उत्पादों का बिना आइएसआइ मार्क के निर्माण करना या उन्हें विक्रय करना या विक्रय के लिए भंडारण करना भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम 2016 के तहत दंडनीय अपराध है।
दो श्रेणी में मिलता है आईएसआई मार्क
दो तरह के बोतलबंद पानी की बिक्री की जाती है। इनमें एक मिनरल वाटर होता है तो दूसरा पैकेज ड्रिंकिंग वाटर है। पैकेज ड्रिंकिंग वाटर के लिए बीआइएस से आईएसआई-14543 मार्क तो मिनरल वाटर के लिए आईएसआई-13428 मार्क लेना होता है। मिनरल वाटर प्राकृतिक तरीके से लिए गए पानी को टेस्ट करके बोतल में बंद करके बेचा जाता है। वहीं पैकेज ड्रिंकिंग वाटर बोरबेल, नगर निगम के पानी को निकालकर आरओ की प्रक्रिया करके पैकेज बोतल बंद करके बेचा जाता है। जब तक पानी सीलबंद नहीं होता है तब तक वह किसी भी नियम की जद में नहीं आता है।
फूड लाइसेंस का भी पता नहीं
भोपाल में सैकड़ों कंपनियां पानी की सप्लाई कर रही हैं। जो कि बोतल बंद पानी से लेकर पाउच व बड़े जार में भी भरकर लोगों को पानी की सप्लाई कर रही हैं। मजे की बात तो यह है कि ऐसी कंपनियों ने फूड के लाइसेंस भी नहीं लिए हैं। भारतीय मानक ब्यूरो बोतलबंद पानी में फर्जी आईएसआई मार्क लगाने या फिर नहीं लगाने पर कार्रवाई करता है। वहीं फूड विभाग सील पानी की जांच करने के हिसाब से कार्रवाई करते हैं। कई बार पानी की जांच को लेकर दोनों विभाग में गफलत बनी रहती है।