न्यूयार्क । चीन, नॉर्थ कोरिया और रूस की हाइपरसोनिक मिसाइलों से बचने के लिए अमेरिका और जापान मिलकर एक इटंरसेप्टर बनाएंगे। जापान के अखबार योमिउरी ने इसका दावा किया है। इंटरसेप्टर बनाने के समझौता की आधिकारिक घोषणा अगले हफ्ते हो सकती है, जब जापान के प्रधानमंत्री कैम्प डेविड समिट के लिए अमेरिका जाएंगे।
रिपोट्र्स के अमेरिका और जापान के बीच जनवरी में ये इंटरसेप्टर बनाने की सहमति बनी थी। इसके लिए अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और हृस््र जेक सुलिवन की जापान के विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के बीच मीटिंग हुई थी।
हाइपरसोनिक मिसाइलों को इंटरसेप्ट करना बैलिस्टिक मिसाइलों की तुलना में काफी मुश्किल होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वो बैलिस्टिक मिसाइलें एक सेट किए गए रास्ते से गुजरते हुए अपने टारगेट को हिट करती हैं। जबकि हाइपरसोनिक मिसाइलें बीच में ही अपना रास्ता बदल सकती हैं। ये स्पीड ऑफ साउंड से 5 गुना तेजी से ट्रैवल करती हैं। इनकी तेज स्पीड भी दूसरी बड़ी वजह है, जिससे इन मिसाइलों को डिटेक्ट करना और रोकना काफी मुश्किल होता है। अमेरिका और जापान के बीच हाइपरसोनिक मिसाइलों के लिए इंटरसेप्टर बनाने का एग्रीमेंट दूसरा बड़ा मिसाइल टेक्नोलॉजी से जुड़ा समझौता है। इससे पहले दोनों देश लंबी रेंज की मिसाइलें बनाने पर काम कर चुके हैं जो स्पेस से भी अपने टारगेट को हिट कर सकती हैं। इन मिसाइलों को जापान ने कोरियन पैनिनसुला में अपने वॉरशिप पर तैनात किया है।
इसी साल मार्च 2023 में अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसी के चीफ साइंटिस्ट ने बताया था कि चीन और रूस दुनिया में हाइपरसोनिक मिसाइलों पर सबसे ज्यादा काम कर रहे हैं। इनमें भी चीन के पास सबसे ज्यादा हाइपरसोनिक मिसाइलें हैं। ऐसे में अमेरिका तेजी से अपनी हाइपरसोनिक मिसाइलों पर खर्च बढ़ा रहा है। वॉयस ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट के मुताबिक हाइपरसोनिक मिसाइलों पर रिसर्च के लिए अमेरिका 2023 से 2027 के बीच 15 बिलियन डॉलर यानी 1 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगा। वहीं, अमेरिका इस तरह की मिसाइलों से अपनी सुरक्षा के लिए डिफेंस सिस्टम पर भी रिसर्च कर रहा है। फिलहाल सिक्योरिटी कवर के लिए अमेरिका के पास पैट्रियट डिफेंस सिस्टम है। इसका यूक्रेन समेत 17 देशों में हो रहा है।