महाभारत युद्ध के 15 साल बाद जब एक रात के लिए पुनर्जीवित हुए थे योद्धा, जानें क्या थी वो अद्भुत घटना

महाभारत का युद्ध एक ऐसा संग्राम जिसने इतिहास के पन्नों को रक्तरंजित कर दिया जिसमें अपनों ने अपनों के लहू से धरती को सींचा. इस युद्ध के 15 साल बाद एक अद्भुत घटना घटी. महर्षि वेदव्यास ने अपनी दिव्य शक्ति से कुरुक्षेत्र की रणभूमि को एक रात के लिए पुनर्जीवित कर दिया. बिछड़े योद्धा जो काल के गाल में समा चुके थे एक बार फिर अपने प्रियजनों से मिलने के लिए लौट आए.
महाभारत की वो एक रात
यह एक अद्भुत रात थी जिसमें प्रेम और करुणा का सागर उमड़ आया. माताएं अपने पुत्रों से लिपटकर रोईं पत्नियां अपने पतियों के चरणों में गिर पड़ीं, भाई-भाई के गले मिलकर लिपट गए. हर आंख में आंसू थे हर हृदय में प्रेम की ज्वाला धधक रही थी.
दुर्योधन भी अपने किए पर हुआ शर्मिंदा
इस पुनर्मिलन के अवसर पर दुर्योधन भी अपनी अंतरात्मा से साक्षात्कार करने के लिए उपस्थित हुआ. उसने द्रौपदी से मिलकर अपने कुकर्मों के लिए क्षमा मांगी. दुर्योधन ने कहा, “हे देवी. मैंने अपने जीवन में तुम्हारे साथ बहुत बुरा व्यवहार किया. तुम्हारा अपमान करने के लिए मैं अभी तक लज्जित हूं लेकिन यह द्वेष, ईर्ष्या सब जीवन तक ही थी. मैं जीवन के उस पार जाकर देखता हूं तो मुझे सब व्यर्थ ही नजर आता है.”
दुर्योधन के यह शब्द हर मनुष्य के जीवन का अंतिम सत्य हैं. जब हम मृत्यु के द्वार पर पहुंचते हैं, तो हमें अपने जीवन की सारी व्यर्थता का ज्ञान होता है. धन, दौलत, पद, प्रतिष्ठा सब कुछ यहीं रह जाता है केवल हमारे कर्म ही हमारे साथ जाते हैं. इसलिए हमें अपने जीवन में अच्छे कर्म करने चाहिए. प्रेम और करुणा का मार्ग अपनाना चाहिए.
यह महाभारत की एक रात हमें सिखाती है कि जीवन कितना अनमोल है. हमें इसे प्रेम, सद्भाव और भाईचारे के साथ जीना चाहिए. हमें अपने अहंकार और द्वेष को त्यागकर दूसरों के साथ मिलकर रहना चाहिए. यही जीवन का सच्चा सार है.
महाभारत की ये घटना हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण सबक सिखाती है. यह हमें बताती है कि हमें अपने जीवन में हमेशा सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए साथ ही कभी भी अहंकार और द्वेष में नहीं पड़ना चाहिए. हमें हमेशा दूसरों के साथ प्रेम और करुणा का व्यवहार करना चाहिए. यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि मृत्यु अटल है. इसलिए हमें अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए हर पल का उपयोग करना चाहिए.