देश में 12 ज्योतिर्लिंग है. उनमें से एक बाबा बैद्यनाथ हैं. सभी ज्योतिर्लिंग की अपनी-अपनी परंपराएं और मान्यताएं हैं. लेकिन, देवघर के बाबा बैद्यनाथ की महिमा कुछ खास है. यहां कई ऐसी परंपराएं हैं जो शायद ही किसी अन्य ज्योतिर्लिंग में देखने को मिले. यहां ज्योतिर्लिंग का स्पर्श पूजन है. यहां त्रिशूल की जगह पंचशूल विराजमान है. पंचशूल का बेहद खास महत्व है

देवघर के बैद्यनाथ धाम के प्रसिद्ध तीर्थ पुरोहित प्रमोद श्रृंगारी ने लोकल 18 को बताया कि ज्यादातर शिव मंदिरों या ज्योतिर्लिंग में त्रिशूल देखने को मिल जाएंगे, लेकिन बैद्यनाथ धाम के प्रांगण में 22 मंदिर हैं. सभी मंदिरों के शिखर पर त्रिशूल नहीं, बल्कि पंचशूल विराजमान है. मान्यता है कि पंचशूल को सुरक्षा कवच के रूप में रावण ने स्थापित किया था. पंचशूल किसी भी प्रकार की आपदा से मंदिर की सुरक्षा करता है.

विभीषण ने श्रीराम को बताया था राज!
आगे बताया कि एक धार्मिक कथा के अनुसार, रावण ने भी लंका के मुख्य द्वार पर पंचशूल स्थापित किया था. रावण और विभीषण को तो पंचशूल भेदना आता था, लेकिन भगवान राम इन सब चीजों से अनभिज्ञ थे. विभीषण द्वारा जब इन सब चीजों की जानकारी दी गई तब भगवान राम अपनी सेना के साथ लंका में प्रवेश कर पाए थे.

पंचशूल की कई विशेषता
तीर्थ पुरोहित प्रमोद श्रृंगारी ने बताया कि इस ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव के साथ शक्ति भी विराजमान हैं. तंत्र साधना के लिए यहां पर मां शक्ति की पूजा की जाती है. बैद्यनाथ धाम में श्री विद्या के साथ ही शिव और शक्ति का विशेष क्षेत्र और तंत्र क्षेत्र होने के कारण त्रिशूल की जगह यहां पंचशूल विराजमान है. इस ज्योतिर्लिंग में त्रिशूल का तो प्रभाव है ही, जो व्यक्ति में अज्ञान और अंधकार को दूर करता है. साथ ही पंचशूल जो पांच तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु का प्रतीक माना जाता है. यह किसी भी आपदा से सुरक्षा करता है.

पंचशूल के दर्शन मात्र से ही पापों का नाश!
तीर्थ पुरोहित ने बताया कि शिव पुराण में उल्लेख है कि पंचशूल के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालु अनजाने में जो भी पाप किए हैं, उनका भी नाश हो जाता है. साथ ही समस्त फलों की भी प्राप्ति होती है.

इस दिन होती है पूजा
बैद्यनाथ धाम के प्रांगण में 22 मंदिर विराजमान हैं, जिसमें मुख्य सहित अन्य मंदिरों के शिखर पर पंचशूल है. यह पंचशूल महाशिवरात्रि से एक सप्ताह पहले मंदिरों से उतारना शुरू हो जाता है. सबसे पहले भगवान गणेश के मंदिर का पंचशूल उतारा जाता है. धीरे-धीरे सभी मंदिरों के पंचशूल उतारे जाते हैं. वहीं, महाशिवरात्रि से 2 दिन पहले भगवान शिव और माता पार्वती के मंदिर का पंचशूल उतारा जाता है. महाशिवरात्रि के दिन विधि विधान से पूजा कर फिर मंदिर के शिखर पर पंचशूल विराजमान किए जाते हैं.