क्या है अश्वत्थामा का वो सच, जिसे पर्दे पर उतारेंगे शाहिद कपूर, 5000 से ज्यादा साल से है जिंदा

सनातन हिंदू धर्म में ये माना जाता है कि इस दुनिया में 7 चिरंजीवी हैं. यानी 7 ऐसे लोग हैं जो सदियों से जीवित हैं और उन्होंने युगों को, सदियों को अपने सामने गुजरते हुए देखा है. ये 7 चिरंजीवी हैं, 1.परशुराम, 2. हनुमान, 3. महर्षि वेद व्यास, 4. विभीषण, 5 कृपाचार्य, 6 अश्वत्थामा और 7 महाबली. आज हम आपको इन चिरंजीवियों में से अश्वत्थामा की कहानी बता रहे हैं. अश्वत्थामा इन दिनों एक बार फिर से सुर्खियों में है, जिसकी वजह है अमेजन प्राइम पर अनाउंस हुई एक्टर शाहिद कपूर की नई फिल्म, ‘अश्वत्थामा’. हालांकि आपको याद दिला दें कि शाहिद कपूर से पहले इसी टाइटल की फिल्म का अनाउंसमेंट एक्टर विक्की कौशल के साथ किया गया था. हम आपको बताने जा रहे हैं इसी अश्वत्थामा के बारे में जिसके किरदार को पर्दे पर उतारने के लिए फिल्मी दुनिया के लोग बेचैन हैं. अश्वत्थामा, जिसे आशीर्वाद की वजह से नहीं बल्कि श्री कृष्ण के अभिशाप ने चिरंजीवी बनाया है.
कौरवों-पांडवों का गरुपुत्र था अश्वत्थामा
चिरंजीवी का अर्थ होता है, जो अमर हो यानी वह व्यक्ति जिसने जीवन और मृत्यू की सीमाओं को पार कर लिया है. ऐसे ही चिरंजीवी कहे जाते हैं द्रोणपुत्र अश्वत्थामा. अश्वत्थामा, कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य और कृपि के पुत्र हैं. द्रोणाचार्य ने ही कौरवों और पांडवों को शस्त्र विद्या सिखाई थी. हस्तिनापुर के प्रति अपना पक्ष समझते हुए गुरु द्रोण ने कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ने का फैसला लिया. वो कौरवों के सेनापति बने थे. अश्वत्थामा भी उन्हीं के साथ था और वह दुर्योधन का अच्छा मित्र भी था.
अश्वत्थामा मारा गया…
महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य ने कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ा था. गुरु द्रोण के आगे पांडवों की सेन लाचार पड़ रही थी. वहीं अश्वत्थामा ने भी युद्ध में कई पांडवों के योद्धाओं को मारा था. इस पिता-पुत्र की जोड़ी के होते हुए पांडवों का महाभारत का युद्ध जीतना असंभव लग रहा था. ऐसे में श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कूटनीति का सहारा लेने को कहा. युद्ध के दौरान ये खबर फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया…’ ये सुन द्रोण विचलित हो गए और उन्होंने युधिष्ठिर से सत्य जानना चाहा. युधिष्ठिर धर्मराज थे और कभी झूठ नहीं बोलते थे. ऐसे में जब द्रोणाचार्य ने सच पूछा तो युधिष्ठि ने कहा ‘अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा’ (अश्वत्थामा मारा गया है, किंतु गज). ‘किंतु गज’ उन्होंने बहुत धीरे बोला जिसे द्रोण सुन न सके और शस्त्र त्याग अपनी आंखें बंद पर पुत्र के लिए विलाप करने लगे. गुरु द्रोण का निहत्था देख द्रौपदी के भाई द्युष्टद्युम्न ने तलवार से द्रोणाचार्य का सिर काट दिया. द्रोणाचार्य की मृत्यू के बाद ही पांडवों की युद्ध में वापसी हुई और अब धीरे-धीरे कौरवा कमजोर हो गए. दुर्योधन की मृत्यू के साथ ही महाभारत का ये भीषण युद्ध समाप्त हो गया.
द्रौपदी के 5 पुत्रों का हत्यारा अश्वत्थामा
महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद भी अश्वत्थामा अपने पिता की मृत्यू का बदला पांडवों से लेना चाहता था और पांडवों को खत्म करना चाहता था. ऐसे में उसने योजना बनाई कि वो पांडवों के शिविर में जाएगा. शिविर में द्रोपदी के पांच बेटे सो रहे थे. अश्वत्थामा ने अंधेरे में पांडव समझकर इन पांचों को मार दिया. अश्वत्थामा यहीं नहीं रुका, उसने पांडवों से युद्ध किया और उन्हें खत्म करने के लिए ब्रह्मास्त्र निकाला. अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र चलाता देख अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया. लेकिन ये शस्त्र इतना शक्तिशाली होता है कि इससे पूरी दुनिया खत्म हो सकती थी. ऐसे में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा, तो अर्जुन ने ऐसा ही किया. लेकिन अश्वत्थामा से जब ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा गया तो उसे ये वापस लेना नहीं आता था, बल्कि उसने इसकी दिशा बदल दी और इसकी दिशा अभिमन्यु की विधवा उत्तरा की कोख में पल रहे बच्चे की तरफ इसकी दिशा कर दी. इसी घटना पर श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को ये अभिशाप दिया कि उसके माथे पर लगी ये चमत्कारिक मणी छीन ली जाए और अब ये घाव हमेशा रिसता और दुखता रहेगा. उसने कोख में पल रहे बच्चे को मारा है, वह खुद अब मृत्यू के लिए तरसेगा और इस धरती के अंत तक भटकता रहेगा.