सरदार पटेल के कहने पर ठुकरा दिया था भोपाल रियासत के प्रधानमंत्री का पद
भोपाल । 15 अगस्त 1947 को जब पूरा देश अंग्रेजों की अधीनता से आजाद हो गया था, भोपाल समेत कुछ रियासतें तब भी पूरी तरह आजाद नहीं हो पाई थीं। इसकी वजह थी तत्कालीन शासकों की हठधर्मिता। वे अपने राज्य का भारत में विलय नहीं करना चाहते थे। भोपाल का मामला और अलग था। यहां के नवाब हमीदुल्लाह पाकिस्तान के साथ विलय की मंशा पाले थे, जबकि जनता अंखड भारत का हिस्सा बनना चाहती थी। भारत सरकार ने भी रियासतों के विलय का अभियान चला रखा था। इन्हीं दो परस्पर विरोधाभाषी इच्छाओं का परिणाम था भोपाल विलीनीकरण आंदोलन, जिसे अब गौरव दिवस के रूप में याद किया जाने लगा है। 75वें विलीनीकरण दिवस के मौके पर हम आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले लेकिन कम चर्चित रहे क्रांतिकारी लक्ष्मीनारायण सिंहल, रामचरण राय और उनके परिवार के बारे में बता रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लक्ष्मीनारायण सिंहल के पुत्र प्रबोध सिंहल ने बताया कि मेरे पिता उन दिनों हिंदू महासभा के अध्यक्ष और नवाब के स्टेट ज्वेलर्स थे। मदनलाल एंड ब्रदर्स के नाम से हमारी फर्म थी। देश की आजादी के बाद नवाब हमीदुल्लाह खान भारत में विलय नहीं चाहते थे। उनका इरादा पाकिस्तान के साथ मिलने का था। तब उन्होंने विलय से बचने के लिए एक छद्म सरकार बनाने का निर्णय लिया। तब तक विलीनीकरण आंदोलन की लहर चल चुकी थी और नवाब को पता था कि यदि लक्ष्मीनारायण सिंहल इसमें शामिल हो गए तो आंदोलन बड़ा रूप ले लेगा। तब हमीदुल्लाह ने पिताजी को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्हें भोपाल स्टेट का प्रधानमंत्री बनाने की पेशकश की गई थी। यह घटनाक्रम जनवरी 1948 का था। पत्र लेकर पिताजी दिल्ली गए और सरदार वल्लभ भाई पटेल से चर्चा की। पटेल ने कहा कि भोपाल का भारत में विलय तो होगा ही चाहे आप जो बनो। यह आफर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के भोपाल के अध्यक्ष चतुरनारायण मालवीय को भी दिया गया था। वे भी दिल्ली गए थे और सरदार पटेल से इस संबंध में चर्चा की थी। सरदार पटेल से चर्चा के बाद पिताजी ने तो प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया लेकिन चतुरनारायण मालवीय ने भोपाल आकर नवाब का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था। उन्होंने मंत्रिमंडल का गठन किया, जिसमें भोपाल के कई नेता थे, हालांकि यह सरकार चल नहीं पाई। इसके पूर्व दिल्ली से भोपाल आते ही पिताजी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। इस बीच विलीनीकरण आंदोलन और तेज हो गया और कुछ माह बाद भोपाल का भारत में विलय हो गया। करीब दो माह जेल में रहने बाद वे रिहा हुए थे।
आंदोलन का केंद्र था राय भवन और रतनकुटी
रामचरण राय के पुत्र डा. राजेश राय बाताते हैं कि जुमेराती में हमारा और भाई रतन कुमार का घर पास-पास ही था। यही दोनों स्थान विलीनीकरण आंदोलन का केंद्र थे। मुझे याद है कि हमारे घर का हाल काफी बड़ा था, जिसमें आंदोलन की रणनीति तय करने के लिए बैठकें हुआ करतीं थीं। मैं छोटा था और आंदोलनकारियों के चाय-पानी का इंतजाम किया करता था। पिताजी लेखक और वकील भी थे। नवाब की पुलिस ने जब सार्वजनिक स्थलों पर रैली, प्रदर्शन आदि पर रोक लगा दी थी, तब हमारे चार मंजिला घर की छत पर रैली और धरना भी हो जाता था। मेरे घर से पिताजी रामचरण राय के साथ ही मेरी बुआ लीला राय, रुक्मिणी राय और चाचा बाबूलाल अग्रवाल भी विलीनीकरण आंदोलन के सक्रिय नेता थे। एक परिवार से चार लोगों का आंदोलनकारी होना अपने आप में बड़ी बात है। बुआ लीला राय बाद में भोपाल ग्रामीण से पहली विधायक भी बनीं। पूरे परिवार में से किसी ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा नहीं लिया। सभी का मानना था कि आंदोलन में हमने अपनी मर्जी से भाग लिया है, दर्जा लेकर सरकार से कोई सुख-सुविधाएं नहीं लेना चाहते, इसीलिए फ्रीडम फाइटर का फार्म नहीं भरा था। वहीं, भाई रतन कुमार के पुत्र डा. आलोक गुप्ता बताते हैं कि विलीनीकरण आंदोलन में रतनकुटी से भाई रतन कुमार की गिरफ्तारी के बाद दूसरी गिरफ्तार देने वाले नेता रामचरण राय थे, जिन्हें पुलिस ने राय भवन से बंदी बनाया था। एक जून को विलीनीकरण की घोषणा भी राय भवन की बालकनी से की गई थी।